2022 में कब मनाएं रक्षाबन्धन-11 या 12अगस्त शास्त्र मत अनुसार

!!श्रीर्जयति!!
श्री ललिता महात्रिपुर सुन्दरी श्री श्रीजी शक्तिपीठ मथुरा
मांगलिक कार्य व ज्योतिष फलित केंद्र
(श्रीविद्या शक्तिपीठ/ श्री यमुनाजी धर्मराज वाले)
(महाराजवंश)

2022 में कब मनाएं रक्षाबन्धन-11 या 12अगस्त शास्त्र मत अनुसार


रक्षाबन्धन- विचार

अथरक्षाबंधनमस्यामेव पूर्णिमायांभद्रारहितायांत्रिमुहूर्ताधिकोदयव्यापिन्यामपराह्नेप्रदो

पेवाकार्य उदयेत्रिमुहूर्त न्यूनत्वे पूर्वेद्युर्भद्रारहितेप्रदोषादिकालेकार्य इदंग्रहणसंक्रांति दिनेपि॥(ध.सि.)1

भद्रा वर्जित और छह घटी सें अधिक उदयकाल में व्याप्त होनेवाली ऐसी पूर्णिमा में अपराण्हकाल अथवा प्रदोषकाल मे रक्षाबंधन करना चाहिए । उदयकाल में ६ घटी सें कम पूर्णिमा हो तौ पहली करनी चाहिए, परंतु भद्रा रहित प्रदोषकाल में रक्षाबंधन करना चाहिए यह रक्षाबंधन ग्रहण और संक्रांति के दिन में भी करना चाहिए।

 

भद्रावर्जित ग्रहणदिन में रक्षाबन्धन- विचार

उपाकर्मोदिकं प्रोक्तमृषीणां चैव तर्पणम् । शूद्राणां मन्त्ररहितं स्नानं दानं च शस्यते॥

उपाकर्मणि कर्तव्यमृषीणां चैव पूजनम्। ततोऽपराह्नसमये रक्षापोटलिकां शुभाम्॥

कारयेदक्षतैः शस्तैः सिद्धार्थैर्हमभूषितैः । इति ।

 अत्रोपाकर्मानन्तर्यस्य पूर्णातिथावार्षिकस्यानुवादो न तु विधिः।  

गौरवात् प्रयोगविधिभेदेन क्रमायोगाच्छूद्रादौ तदयोगाच्च।

तेन परेद्युरुपाकरणेऽपि पूर्वेद्युपराह्णे तत्करणं सिद्धम्॥(नि.सि.)

यहाँ पर ही, रक्षाबन्धन हेमाद्रि में भविष्यपुराण में कहा है कि-श्रावणमास के अन्त में प्राप्त होने पर पूर्णिमा के सूर्योदय में श्रुति स्मृतिविधान से बुद्धिमान् स्नान करे। उपाकर्म आदि तथा ऋषियों का तर्पण करे और शूद्रों को मन्त्ररहित स्नान तथा दान कहा है। उपाकर्म में ऋषियों का पूजन करना चाहिये। तदनन्तर अपराह्न समय में शुभ रक्षा करने वाली पोटलिका करे। वह अक्षत, सरसों तथा सुवर्ण से युक्त हो। यहाँ पर उपाकर्म के अनन्तर की पूर्णातिथि वार्षिक का अनुवाद है, विधि नहीं है। गौरव से प्रयोगविधिभेद से क्रम के अयोग से शूद्रादि में उसका प्रयोग है। उससे पर दिन उपाकरण में भी पहले दिन अपराह्न में उसका करना सिद्ध है।

इदं रक्षाबन्धनं नियतकालत्वाद्भद्भावर्ज्यग्रहणदिनेऽपि कार्यं होलिकावत्। ग्रहसंक्रान्त्यादौ

रक्षानिषेधाभावात्। सर्वेषामेव वर्णानां सूतकं राहुदर्शने। इति तत्कालीनकर्मपर एव न त्वन्यत्र। अन्यथा

होलिकायां का गतिः। अत एव-नित्ये नैमित्तिके जप्ये होमे यज्ञक्रियासु च। उपाकर्मणि चोत्सर्गे ग्रहवेधो न विद्यते।। इति नियतकालीने तदभाव इति दिक्। उपाकर्मणि तद्दिनभिन्नपरं तत्र तन्निषेधादित्युक्तं प्राक्।(नि.सि.)

क्योंकि यह रक्षाबन्धन नियत समय पर होने से भद्रा को छोड़कर

ग्रहण-दिन में भी करे, होलिका की तरह। ग्रहण और संक्रान्ति आदि में रक्षानिषेध का अभाव है। सब वर्णों का ही राहु के दर्शन में सूतक होता है। वह तत्कालीन कर्मपरक ही है अन्यत्र नहीं है। अन्यथा होलिका में क्या गति होगी। इसलिये-नित्य, नैमित्तिक, जप, होम, यज्ञक्रिया, उपाकर्म और उत्सर्ग में ग्रहण का वेध नहीं होता है। इस प्रकार नियत काल में उसका अभाव है। उपाकर्म में वह दिनभिन्नपरक है, उसमें उसका निषेध है। यह पूर्व में कह चुके हैं।

 

भद्रा में रक्षाबन्धन- विचार

इदं भद्रायां न कार्यम्। भद्रायां द्वे न कर्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा। श्रावणी नृपतिं हन्ति ग्रामं दहति फाल्गुनी॥ इति सङ्ग्रहोक्तेः । तत्सत्वे तु रात्रावपि तदन्ते कुर्यादिति निर्णयामृते॥(नि.सि.)

इसको भद्रा में नहीं करना चाहिये। संग्रह ने कहा है कि भद्रा में श्रावणी और फाल्गुनी नहीं करना चाहिये।

श्रावणी राजा का नाश करती है और फाल्गुनी ग्राम का दहन करती है। उसके (भद्रां बिना चेदपराह्णे तदा परा। तत् सत्त्वे तु रात्रावपीत्यर्थः।) रहने पर तो रात्रि में भी उसके अन्त में करेयह निर्णयामृत में कहा है।

 

प्रतिपदा युक्त पूर्णिमा में रक्षाबन्धन- विचार

इदं प्रतिपद्युतायां न कार्यम्। नन्दाया दर्शने रक्षा बलिदानं दशासु च। भद्रायां गोकुलक्रीडा देशनाशाय जायते॥ इति मदनरत्ने ब्रह्मवैवर्तात्।(नि.सि.)

इसको प्रतिपदा से युक्त न करे। मदनरत्न ब्रह्मवैवर्तपुराण का मत है कि-नन्दा के दर्शन में रक्षादशा में बलिदानऔर भद्रा में गोकुल की क्रीडा देश के नाश के लिये होती है।

 

व्रतराज

अपराह्णके समय रक्षाबन्धन विधान है । इस कारण इसमें पूर्णिमा अपराह्णव्यापिनी लेनी चाहिये। यदि दो दिन अपराह्णव्यापिनी हो वा दोनोंहि दिन न हो तो पूर्वाका ग्रहण होता है। स्मृतिकौस्तुभने तो 'पूर्णमास्यां दिनोदये-पौर्णमासीमें सूर्य्यको उदय होनेपर' इस कथाके वचनको लेकर उदयकाल व्यापिनी तिथिका ग्रहण किया है पर इस पक्षमें जयसिंहकल्पद्रुमकी संमति नहीं है क्योंकि, मुख्य कर्म रक्षाबन्धनका तो अपराह्ण काल है कर्मकालकी व्याप्ति चाहिये । यदि पहले दिनभद्रा हो तो दूसरे दिन करना चाहिये। निर्णयसिन्धुकार पहले दिन उपाकर्म किया जानेवाला होनेपरभी पूर्व दिन में रक्षाबन्धन मानते हैं । तथा भद्रा को छोडकर तथा ग्रहण में राहुदर्शन का समय छोडकर सभी समयोंमें रक्षाबन्धन करते हैं, रक्षाबन्धन के कार्य में इनके यहाँ सूतक नहीं होता । धर्मसिन्धुकारने भद्रारहित तीन मुहूर्त से अधिक उदयकाल व्यापिनी पूर्णिमाके अपराह्न वा प्रदोषकालमें रक्षाबन्धन होता है यदि तीन मुहूर्तसे कम हो तो पहिले दिन ऐसेही समय अवश्य करे यहाँ तक कि, ग्रहण और संक्रान्तिका समय भी न छोडे, यह कहा है ।

 

भद्रा का निवास और उसका फल

कुम्भकर्कद्वये मर्त्ये, स्त्रीधनुर्जूकनक्रेऽधो भद्रा।

स्वर्गेऽब्जेऽजात्त्रयेऽलिगे, तत्रैव तत्फलम्॥2

कुम्भ, मीन, कर्क और सिंह राशि में चन्द्रमा हो तो भद्रा मर्त्य (मनुष्य लोक) में रहती है। मेष, वृष, मिथुन और वृश्चिक राशि में चन्द्रमा हो तो स्वर्ग में भद्रा रहती है। कन्या, तुला, धन, मकर राशि में चन्द्रमा हो तो पाताल मे भद्रा रहती है। भद्रा का जहाँ वास होता है वहीं उसका फल होता है॥


अथ-निर्णय

अथ-निर्णय यह है कि रक्षाबंधन का पर्व 11 अगस्त 2022 को मनाया जाएगा क्योंकि जैसा हमने पूर्व में पढ़ा1 पूर्णिमा में अपराण्हकाल अथवा प्रदोषकाल मे रक्षाबंधन करना चाहिए यदि पूर्णिमा तिथि दूसरे दिन तीन मुहूर्त यानी छः घड़ी अर्थात 2घंटे 24मिनट से अधिक हो तो पर्व दूसरे दिन मनाया जाना उचित है, परंतु इस बार 12 अगस्त को पूर्णिमा तीन मुहूर्त यानी छः घड़ी अर्थात 2घंटे 24मिनट से कम होने के कारण रक्षाबंधन पर्व 11 अगस्त 2022 को मनाया जाएगा। अब कई विद्वानों का मत है के भद्रा में रक्षाबंधन कैसे मनाएं, तो इस पर धर्म शास्त्र कहते हैं कि मकर में चंद्रमा हो तब भद्रा पाताल के मान्य होते हैं, और शास्त्र का ऐसा मानना है की भद्रा2 जहां निवास करते हैं वही उनका फल प्राप्त होता है,  इस कारण इस बार भद्रा पाताल में है तो पृथ्वी पर उनका फल व कार्य-निषेध मान्य नहीं है।

 

अतः मथुरा उ.प्र. दूसरे दिन तिथि का मान 01घंटे 36मिनट

पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ 11/08/2022 10:39am-समाप्त 12/08/2022 07:06am

सूर्य उदय 11/08/2022 05:29am

सूर्य उदय 12/08/2022 05:30am

 

अथ- पूर्णिमा तिथि-समाप्त 12/08/2022  07:06am

        सूर्य उदय                 12/08/2022 -05:30am

                                                           =01:36



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